भगवान राम आज भी प्रासंगिक क्यूँ हैं?

मगंल भवन अमंगल हारी
द्रबहु सु दशरथ अचर बिहारी
इस सृष्टि के संरक्षणकर्ता, हम सभी के पालनकर्ता, श्री हरि विष्णु के 7 वें अवतार प्रभु श्री राम का स्मरण करेंगे। 
यूं तो राम का जन्म सूर्यवंश में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में एक आम  राजकुमार के रूप में हुआ था लेकिन राम को वर्षों की तपस्या, अनुशासन, त्याग, बलिदान, कर्तव्य, आदेश समन्वय और राज धर्म ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बनाता है। श्री राम की महिमा को इसी बात से दर्शाया जा सकता है कि भारत के कण-कण में राम है। 
भारतवर्ष में राम की प्रासंगिकता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुबह की राम-राम से लेकर मनुष्य की अंतिम यात्रा तक सिर्फ़ राम का नाम ही सत्य है। 
राम से बड़ा राम का नाम है। यही कारण है कि राम लिखा हुआ पत्थर, राम के दुश्मन रावण द्वारा भी समुन्द्र में फेंकने पर तैरने लगता है। राम सर्वव्यापी हैं। कण कण में राम हैं। राम का नाम लेने कर लिए हमें विशेष समयावधि की आवश्यकता नहीं होती।
भगवान अगर चाहे तो एक झटके में पाप का सर्वनाश कर सकते हैं, लेकिन धर्म की स्थापना के लिए वे समय-समय पर अलग अलग रूपों में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। विष्णु जी ने त्रेता युग में मनुष्य रूप में राम के रूप में अवतार लिया तो उनका एकमात्र उद्देश्य इस पृथ्वी पर धर्म की स्थापना ही नहीं था बल्कि एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करना था जो आने वाली पीढ़ी को सत्य, मर्यादा और धर्म के मार्ग को प्रशस्त करने में मददगार साबित हो। 
प्रभु श्रीराम के जीवन से हम कई बातें सीख सकते हैं जैसे कि धैर्य, वचनबद्धता, सबको साथ लेकर चलना, उदारता, नेतृत्व, क्षमता, त्याग और विश्वास। 
राम धैर्यवान हैं, अपने भ्राता लक्ष्मण की तरह बात बात पर क्रोधित नहीं होते। वनवास जाने की बात को सहर्ष स्वीकार करते हैं। सूर्पनखा के प्रेम प्रस्ताव का भी उत्तर बड़ी विनम्रता से देते हैं। समुद्र से धैर्य पूर्वक हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि वानर सेना को लंका जाने में सहयोग करें। 
आपने यह तो सुना ही होगा कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। राम ने अपने पिता द्वारा वनवास के आदेश को ना सिर्फ़ आशीर्वाद स्वरूप स्वीकार किया अपितु 14 वर्षों तक वन में रहकर अपने कई वचनों को आत्मसात किया और राम जब वापस लौटे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहलाए। 
राम सिर्फ सिया के राम नहीं है। राम शबरी के भी हैं, राम जटायु के भी हैं। राम सुग्रीव के भी हैं। राम विभीषण और हनुमान के भी है। 
युद्ध के दौरान राम ने अपने नेतृत्व क्षमता का शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है। तभी तो वे कभी हनुमान कभी अंगद तो कभी जामवंत को अपने दूत बनाकर लंका भेजते हैं। 
साधारण से मानव जैसे दिखने वाले और केवल तीर धनुष लिए हुए राम को देखकर रावण ने उन्हें कम आंकने की गलती की। तत्पश्चात परिणाम यह हुआ कि रावण की मृत्यु, राम के हाथों हुई। ये पूरा राम रावण युद्ध पवन पुत्र हनुमान के सहयोग के बिना संभव नहीं था। चाहे सीता मैया की खोज करनी हो या लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाना हो, हनुमान ने सदैव अपने भगवान राम की भक्ति में उनका आदेश मानकर अपने कर्तव्य का यथोचित निर्वहन किया। 
हनुमान की राम के प्रति भक्ति का डर यमराज को भी था। तभी तो जब तक राम के साथ हनुमान थे तब तक काल भी राम को लेने नहीं आ सका। चूंकि राम का जन्म मनुष्य के रूप में हुआ था, इसलिए उनकी मृत्यु निश्चित थी, लेकिन हनुमान के साथ रहते ये संभव न था। तब रामजी ने अंगूठी गुम हो जाने की लीला रची। जिससे हनुमान राम से दूर होकर अंगूठी खोजने नाग लोक तक चले गए। तब जाकर कहीं राम मृत्यु को प्राप्त हुए। ऐसी भक्ति सिर्फ़ हनुमान ही कर सकते हैं। तभी तो राम और हनुमान का नाम हर युग में एक साथ लिया जाता है।
राम ने वनवास से लौटने के बाद एक राजा के रूप में कई वर्षों तक अयोध्या पर राज किया और एक आदर्श स्थापित किया। प्रभु श्रीराम के शासनकाल में उनके राज्य अयोध्या में चारों तरफ खुशी और सौहार्द का माहौल था। ना केवल मनुष्य बल्कि पशु पक्षी और जीव जंतु भी खुश थे। राम एक ऐसे आदर्श राजा के रूप में प्रसिद्ध हैं कि आज भी अगर कहीं बेहतर शासन व्यवस्था की कल्पना की जाती है तो सिर्फ एक ही नाम आता है- प्रभु श्री राम और उनका रामराज्य।
बोलो सियापति रामचंद्र की जय। 
जय श्रीराम।
©नीतिश तिवारी।
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