यूँ तो हमारे भारत देश में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी बोलने, समझने और पढ़ने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसका सबसे बड़ा श्रेय हिन्दी साहित्य के उन सभी लेखकों, कवियों और उपन्यासकारों को जाता है जिन्होंने अपने- अपने कालखंड में हिन्दी में कालजयी रचनाओं का सृजन किया।
ऐसा माना जाता है कि हिन्दी साहित्य का विकास दसवीं शताब्दी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन भक्तिकाल को छोड़ दें तो हिन्दी साहित्य में स्वर्णिम रचनाएँ हमें सत्रहवीं से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक देखने को मिलती हैं। आधुनिक हिन्दी की अधिकतर रचनाएँ और लेखकों को जिन्हें आप जानते हैं, उन्होंने अंग्रेजी शासन के दौर में तमाम कठिनाईयों और अभावों के बीच हिन्दी साहित्य में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर प्रेमचंद तक, निराला से लेकर दिनकर तक, इन सभी की कृतियाँ आज जनमानस के जहन बसी हुई हैं। इनकी लोकप्रियता का आलम ये रहा कि हम बचपन से ही इनकी कृतियाँ पाठ्य पुस्तकों में पढ़ते आए हैं।
कबीर, तुलसी, सूरदास ने हमें निर्गुण भक्ति से लेकर सगुन भक्ति तक का दर्शन अपनी कविताओं के माध्यम से करवाया। वहीं जायसी, बिहारी, रासो, चंदबरदाई जैसे कवियों ने प्रेम से संबंधित कई रचनाएँ लिखीं। इतिहास के कालखंड में घटित हुई घटनाओं को विभिन्न साहित्यकारों ने अपनी रचना कौशल से कविता, खंड-काव्य, उपन्यास, नाटक के माध्यम से लिखा है। एक संवेदना से परिपूर्ण समाज की व्यथा और दशा जानने के लिए आप साहित्य का सहारा लेते हैं। हिन्दी साहित्य पुराने दौर के लोगों की जीवनशैली के साथ साथ उस दौर की सामाजिक संरचना से भी परिचित कराती है।
जब आप कोई उपन्यास पढ़ते हैं तो आप सिर्फ एक कहानी नहीं पढ़ रहे होते हैं बल्कि उस कहानी के उद्देश्य, किरदारों के व्यवहार, समाज की सच्चाई और उस दौर के ताने बाने से भी अवगत होते हैं। साहित्य पढ़ने से अलग-अलग तरह के किरदारों को जानने और समझने का मौका मिलता है। चिंतन और तर्क करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इन सभी चीजों से साहित्य मजबूत होता है जिससे साहित्य के विकास को भी एक नई दिशा मिलती है।
हिन्दी साहित्य पढ़ना मतलब अपनी माटी, अपने देश, अपनी जमीन से जुड़ा हुआ महसूस करना। साहित्य पढ़ने से अलग अलग कालखंड के सामाजिक संरचना, ग्रामीण, कस्बाई और शहरी परिवेश के बारे में भी जानकारी मिलती है।
आज की इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में थोड़े से ठहराव के लिए साहित्य के माध्यम से अतीत के सुनहरे दौर से जाया जा सकता है। खासकर इक्कीसवीं सदी के बच्चों को विशेष रूप से उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में लिखे गए साहित्य को जरूर पढ़ना और समझना चाहिये।
इंटरनेट के इस दौर में हिन्दी साहित्य की किताबें और हिन्दी वेब कंटेन्ट को ज्यादा पढ़ा जाने लगा है। लेकिन अभी भी बहुत काम करने की आवश्यकता है। अगर आप भी हिन्दी में लिखते हैं या हिन्दी साहित्य पढ़ते हैं तो कमेंट करके जरूर बताएँ। हमारे इस वेबसाइट के बारे में अपना बहुमूल्य सुझाव जरूर दीजिएगा।
©नीतिश तिवारी।
नमस्ते! मेरा नाम नीतिश तिवारी है। मैं एक कवि और लेखक हूँ। मुझे नये लोगों से मिलना और संवाद करना अच्छा लगता है। मैं जानकारी एकत्रित करने और उसे साझा करने में यकीन रखता हूँ।