ऐसा कहा जाता है कि रावण एक महान प्रकाण्ड पंडित था। लेकिन फिर भी हम उसका पुतला हर साल जलाते हैं। रावण बुरा था क्योंकि उसने माँ सीता का हरण किया। बार बार कहने के बावजूद माँ सीता को भगवान राम के पास नहीं लौटाया। इसका नतीजा यह हुआ कि रावण का वध करना पड़ा। रावण को राम ने नहीं मारा बल्कि रावण को मारा उसके अहंकार ने।
कहते हैं कि आपने कितनी भी अच्छाई की हो लेकिन लोग तो आपके बुराई को ही देखते हैं। या यूँ कहा जाए कि बुराई जल्दी दिख जाती है। रावण की बुराई ऐसी थी जो ना केवल दिखती है बल्कि सम्पूर्ण संसार में रावण वध असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है। हर साल रावण का पुतला इस उम्मीद में दहन किया जाता है कि अब बुराई खत्म हो गयी। लेकिन वही बुराई फिर से आ जाती है और फिर से हम अगले साल उसी रावण के पुतले को जलाते हैं।
समझने वाली बात है कि ये बुराई खत्म क्यों नहीं होती? दरअसल हम बुराई के प्रतीक चिन्ह का दहन करते हैं। अपने अंदर के बुराई, समाज की बुराई का कुछ नहीं करते। हम ये मानने के लिए तैयार ही नहीं होते की हम सभी के अंदर कुछ न कुछ बुरा जरूर है। हम सभी किसी ना किसी ऐसे दूषित भावना से ग्रषित हैं जिसका शुद्धिकरण जरूरी है। और ये शुद्धिकरण साल में एक बार रावण के पुतले को जलाने से नहीं होगा। हर रोज हमें एक साथ मिलकर अपने अंदर के बुराई को खत्म करना होगा। समाज को शुद्ध करना होगा। लेकिन बात वही है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? कौन स्वीकार करेगा कि वो बुरा है? कौन स्वीकर करेगा कि वो अपने अंदर की बुराई को खत्म कर देना चाहता है? सवाल कई हैं और उसके जवाब भी सभी को मालूम है। बस देरी है तो उस पर काम करने की।
आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं!
©नीतिश तिवारी।
नमस्ते! मेरा नाम नीतिश तिवारी है। मैं एक कवि और लेखक हूँ। मुझे नये लोगों से मिलना और संवाद करना अच्छा लगता है। मैं जानकारी एकत्रित करने और उसे साझा करने में यकीन रखता हूँ।