भारतीय संस्कृति की लौ को प्रज्ज्वलित रखने की जिम्मेदारी युवाओं के कंधों पर क्यों हैं?

किसी भी देश के नवनिर्माण में उसकी तरक्की में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में 65% से अधिक लोग 35 वर्ष या उससे कम आयु के हैं। ऐसे में युवाओं के कंधों पर अपने देश की सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखने और उसका प्रचार प्रसार करने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। आज इस ब्लॉग पोस्ट में हम इसी बात पर चर्चा करेंगे कि क्यों भारतीय संस्कृति को बनाए रखने में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिए।

युवा खासकर किशोरावस्था वाले लड़के लड़कियों का मन बहुत चंचल होता है। आसपास की लुभावनी चीजों को देखकर बहुत जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। ऐसे में उनके लिए परंपरागत जीवन शैली और आधुनिकता के बीच सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है। यहीं पर हमारी संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, अनुष्ठान महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

भारत या यूँ कहें कि आर्यावर्त का लाखो वर्षों का इतिहास रहा है। दुनिया की कई प्रचलित सभ्यताएं जैसे कि रोमन एंपायर, मेसोपोटामिया, माया सभ्यता, मिस्र की सभ्यता सब मिट गई, लेकिन तमाम आक्रमणों के बावजूद भी सनातन संस्कृति आज भी जिंदा है। कुछ तो बात है हम सब में जो सैकड़ों साल की गुलामी के बाद भी हम अपनी सभ्यता संस्कृति को आज भी जिंदा रखे हुए हैं। आज के बदलते परिदृश्य में यह जरूरी हो जाता है कि देश के युवा अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का गुणगान करें। अपनी संस्कृति का, अपने होने का उत्सव मनाएँ। नहीं तो आने वाले वर्षों में हम भी सिर्फ इतिहास बन कर रह जाएंगे।

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भारतीय कला संस्कृति और साहित्य का पूरी दुनिया लोहा मानती है। चाहे वह विशालकाय मंदिर हों या ऐतिहासिक इमारतें, सब के सब अपने आप में अद्वितीय हैं। हमारे धर्म ग्रंथ और हमारे महाकाव्य, उपनिषद, वेद, पुराण सबकी अपनी एक सार्थकता है। युवाओं को चाहिए कि सब का अध्ययन करें और एक दूसरे तक उन में लिखी हुई बातों को पहुंचाएं।

एक समय था जब पूरी दुनिया से लोग यहां पढ़ने में आते थे। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय इसके उदाहरण हैं। वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर चलने वाले भारतवर्ष में आकर पूरी दुनिया के छात्र ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाते थे। समय के साथ हम थोड़े कमजोर पड़ गए हैं, लेकिन अभी भी लोगों और सरकारों द्वारा जरूरी कार्य किया जाए तो भारत एक बार फिर से ज्ञान का केंद्र बन सकता है।

धर्म और अध्यात्म का भी हमारे देश के साथ गहरा नाता है। हमारे ऋषि मुनि योग विद्या और अध्यात्म के बल पर बड़े से बड़ा कार्य को कर लेते थे। 21वीं सदी के भाग दौड़ में युवाओं के पास इतना समय ना हो कि वे पूरी तरह से धर्म और अध्यात्म में लीन हो जाएं फिर भी अगर थोड़ा बहुत भी अपने पूर्वजों का अनुकरण करेंगे तो जीवन शैली पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

भारत विविधताओं का देश है। हर राज्य, हर क्षेत्र की अपनी अलग बोली, रहन-सहन और पहनावा हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम सभी के संस्कृति का न केवल सम्मान करें बल्कि संभव हो तो अपनाएं भी। तभी तो एक दूसरे की संस्कृति को समृद्ध बना पाएंगे। युवा अक्सर पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में अपने घर या राज्य से दूर रहते हैं। ऐसे में भी इस कार्य को बहुत अच्छे से कर सकते हैं।

एक और बात है कि हम जहां भी रहे भारतीय होने पर गर्व करें। आज ऐसे लाखों युवा है जो देश के बाहर रहकर ना केवल अपना नाम कर रहे हैं बल्कि अपने देश का भी नाम कर रहे हैं। सात समंदर पार रहकर भी अपने त्योहार होली, दिवाली बड़े धूमधाम से मनाते हैं। वही देश में रहने वाले कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अपने त्यौहार से कुछ मतलब नहीं है। विदेशी सभ्यता के दीवाने हैं।
युवाओं को चाहिए कि वह सभी त्योहारों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें और उन त्योहारों के मनाने के पीछे का उद्देश्य भी जान लें। मैं देखता हूँ कि कुछ मेट्रो शहर के लड़के लड़कियां अपनी संस्कृति को फॉलो नहीं करते। उदाहरण के लिए अगर आप किसी कंपनी में काम करते हैं तो आपने देखा होगा कि विवाहित महिलाएं सिंदूर लगाकर नहीं आती हैं। ऐसे लोगों को ध्यान रखना चाहिए। ये देश, ये संस्कृति सब आपकी विरासत है। अपनी विरासत को अगर आप सहेज कर नहीं रखेंगे तो यह आने वाली पीढ़ी तक कभी नहीं पहुंच पाएगा।

यही सब कुछ कहना था आपसे। मन की बात थी तो लिख दिया। लेख पसंद आए तो शेयर करिएगा। आपके सुझाव,शिकायत और मार्गदर्शन का स्वागत रहेगा।

©नीतिश तिवारी।

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